29 जून 2012

यहाँ मैं अनामिका हूँ...!



यहाँ मैं अनामिका हूँ
हिरन सी चौकड़ी भरती,
बेख़ौफ़ उडान..
हवा से बातें करते,
मदमस्त हौसले..
फिर भी जकड़ दिया
मुझे बेड़ियों में..
सुगन्धित हवा
कैद कर दी
नापाक पंजों में..
किस जहाँ का है ये फैसला
बात सिर्फ
एक फूल की नहीं,
हजारों की है..
दर्द में सिसकती
बेलगाम आहों की है..
कहनी है अपनी बात
सुननी ही होगी फरियाद
क्यों सिर्फ,
यहाँ मैं अनामिका हूँ.....!!

7 टिप्‍पणियां:

  1. SUDAR RACHNA...ANAMIKA...

    ISE BHI PADHEN:-
    "कुत्ता घी नहीं खाता है "
    http://zoomcomputers.blogspot.in/2012/06/blog-post_29.html
    अपने अकेलापन को दूर करने के लिए आपको कितने लोंगो की आवश्यकता पड़ेगी?.....अरशद अली
    http://dadikasanduk.blogspot.in/2012/06/blog-post.html

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  2. बहुत सुन्दर रचना गायत्री जी.....
    दिल को छू गयी...

    अनु

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  3. गहराई में कहीं छू गई आपकी रचना। बहुत खूब!

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  4. बहुत सुन्दर
    सार्थक प्रश्न उकेर रही है रचना

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  5. सुंदर एवं सार्थक रचना अंतिम पंक्तिया सबसे अच्छी लगी।

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