30 अगस्त 2012

सामाजिकता के मायने...!



बहुत समय पहले
पढ़ा था कहीं
कि मनुष्य होता है
एक सामाजिक प्राणी
अरस्तू ने कहा था शायद...
तब नहीं पता थे
सामाजिक होने के मायने
नहीं पता था कि
पहनना पड़ता है एक मुखौटा
और दबा देने होते हैं
एहसासात
दिल के भीतर ही कहीं...
नहीं कर पाता विरोध
ये दिल
उन घिसी-पिटी मान्यताओं का
जिन्हें रचा है समाज ने
एक आवश्यक प्रथा के रूप में
और सामाजिक होने की शर्त पर...
काश ! नहीं होते हम सामाजिक प्राणी
लेते हर निर्णय
दिल की ज़मीं पर
तब शायद इतने उठे होते हाँथ
कि कम पड़ जाते आंसू
और खिलखिलाती मुस्कान
हर चेहरे पर
जो छिप गयी है
मुखौटे के पीछे
हमारी सामाजिकता के.....!!

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16 अगस्त 2012

जीवन बने तुम्हारा...!



हवाओं में कुछ ऐसी खुशबू महक रही है
यूँ लग रहा है जैसे तुम मुझे बुला रहे हो...

ये खुशबू के बहाने, क्या प्यार है तुम्हारा
मन को लुभा रहा है, अहसास ये तुम्हारा...

ये हवाओं ने कहा है, इन फ़िज़ाओं ने सुना है
तुम हो बहुत ही प्यारे, मेरे दिल ने जो चुना है...

ये हवाएं गा रही हैं, दिल का है जो इशारा
अब चाह है ये मेरी, जीवन बने तुम्हारा...!!

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15 अगस्त 2012

आज़ादी पर्व के मायने...!



आज़ादी
एक मूल्यहीन शब्द
बनकर रह गया है
हमारे लिए...
मूल्यवान था ये
उनके लिए
जिन्होंने पाया था इसे
अपना सब कुछ
न्योछावर करने के बाद...
कीमत पूछो आज़ादी की
उस पंछी से
जो कैद है पिंजरे में
और उसकी सूनी आँखें
ताक रही हैं
खुला आकाश
एक उन्मुक्त उड़ान के लिए...
आज़ादी का महत्त्व तो वो भी जानते हैं
जो कैद हैं
काल-कोठरी में
और तरस रहे हैं
मिलने को, अपनों से...
प्रश्न तो ये है ?
हम क्यों नहीं समझते मोल
इस आज़ादी का
सिर्फ इसलिए, कि
कुछ खोया नहीं हमने
इसे पाने के लिए
या शायद
हम इंतजार कर रहे हैं
पुनः उन बंधनों का
ताकि हमें महसूस कराया जा सके
वास्तविक अर्थ
इस आज़ादी का
और हम मना सकें
सही अर्थों में
एक आज़ादी पर्व.....!

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9 अगस्त 2012

भजन



                   कान्हा ने वंशी बजायी,


              राधा रानी दौड़ी चली आई...

१.  कान्हा की मुरली जग से निराली,
             मीरा के भी मन को भायी...
                       राधा रानी...............!

२.  सारी गोपियाँ मुरली सुन रीझें,
              कान्हा ने की चतुराई...
                           राधा रानी.............!

३.  मीरा और राधा दोनों दीवानी,
                     तन-मन की सुध बिसराई...
                            राधा रानी.............!

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1 अगस्त 2012

मेरा वज़ूद...!



सोच के परदे बन्द करके
अँधेरे कमरे के
इक कोने में
बैठा मेरा वज़ूद...
कभी गुनगुनाता
कभी सिसकता
कभी अपने होने पे
प्रश्न-चिन्ह लगाता ?
कभी इतराता, कभी इठलाता
कभी ताकता सूनी छत की ओर
कभी सिमट जाता अपने-आप में
ढूँढने लगता अन्दर ही
कि कहीं मिल जाये
अपने-आप को ढूँढता
अपने-आप में खोया
मेरा वज़ूद.....!!

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