23 अक्तूबर 2012

मन की सिहरन...




                                                                                 


कुछ बूँदें बारिश की

बरस रही हैं आँगन में

मन में भी कुछ

गीलापन सा महसूस हो रहा है...


कुछ भीग गया है शायद

यादों के कुछ कपडे+ हैं

तह करके रखे थे

दिल के किसी कोने में...


अब इन्तज़ार ही कर सकती हूँ

कहीं से आये एक लिफ़ाफ़े का

जो होगा मेरे नाम का

पर पता नहीं होगा उस पर...


शायद कुछ धूप मिल जाये उसमें

लफ़्ज़ों में लिपटी हुई

जो हौले से सहला जाये

मन के गीलेपन को...


    x  x  x 

2 अक्तूबर 2012

एक महान आत्मा...! (महात्मा गाँधी)



कोई नहीं जान पाया उसे
महान आत्माएँ होती भी नहीं
इतनी सरल, कि
चिन्हित कर सके उन्हें
कोई आम आदमी...
वह
जिसने हिला दिया
चट्टान सरीखा,
ब्रिटिश साम्राज्य
चुटकी में, फूँक मारकर...
पर, कितनी ताकत होगी
उस एक फूँक में
सोचना होगा, विचारना होगा
जो संभव नहीं है
एक साधारण मानव के द्वारा...
वह, एक शरीर
जिसमें शक्ति थी
अनेकों शरीरों की
जोड़ा था, जिसने उन्हें
अपने आत्मबल के द्वारा...
वह आत्मबल
जिसे पहचान नहीं पाया
कोई आम आदमी...
चली गई
वह महान आत्मा
अपना सब कुछ लुटा कर
कुछ नहीं माँगा, अपने लिए
फिर भी नहीं जान पाए, हम उसे
क्योंकि
हम सब भी हैं
एक आम आदमी.....!!

       x   x   x   x