31 मार्च 2014

निर्विकार, नि:शेष ज़िन्दगी...!






तुम रोज कहते
कल बिताओगे
अपना पूरा वक्त
मेरे साथ
और मैं
ज़िन्दगी से
अपने आज को
धीरे से बुहार देती...
अब तो
इस रोज-२ की बुहार
से
ज़िन्दगी इस कदर
निर्विकार हो गई है
कि
अब तो इसमें
मेरे दु:ख के स्याह टुकड़े
भी नहीं दीखते
और अश्रु भी
कहीं मलिन होकर
दुबक गए हैं.....!!

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