26 फ़रवरी 2015

सोहर / जच्चा (लोक-गीत)




हमरे तो पीर आवे, ननदी हँसत डोले-२

प्यारे सैंया, भोले सैंया
ननदी विदा करो
आज विदा करो, अभी विदा करो
हमरे तो पीर आवे...

साड़ी कढ़न गई, ब्लाउज सिलन गयो
गंगा-जमुना चढ़ रही हैं
कैसे विदा करूँ..
लेने कोई आया नहीं है
कैसे विदा करूँ..
हमरे तो...

साड़ी मैं अपनी दूँगी, ब्लाउज तो रानी का है
गंगा-जमुना नाव डला दो
ऐसे विदा करो..
छोटा देवर संग करूँगी
ऐसे विदा करो..
हमरे तो...


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14 फ़रवरी 2015

प्रीत की झीनी चदरिया...!




आओ हम ताना बुने
ज़िन्दगी के करघे पर
एक हाथ तुम्हारा, एक मेरा
और रंग तो प्यार के ही होंगे ना?
और हाँ,
कुछ बूटे
नोक-झोंक,
मान-मुनहार के भी बनाना
तभी तो खिलेगी ना
हमारी, प्रीत की झीनी चदरिया...

देखो,
तुम रोते बहुत हो
ऐसा मत करना
वरना रंग बह जाएँगे
मुझे हल्के रंग पसन्द नहीं..
वैसे भी,
जो खुशी के आँसू हैं ना
वो रंगों को गीला रखने के लिए काफ़ी हैं..
एक बात और
पास ही रहना मेरे
जैसे एक जिस्म, दो जान
धागे जितने महीन और करीब हों
कपड़ा उतना ही सुन्दर होता है
और मुलायम भी...

सुनो,
डोर, जो विश्वास की है
तोड़ ना देना उसे
वरना कपड़े पे दिखती साँठ
चुभेगी ज़िन्दगी भर
जब भी सहलाना चाहोगे
प्यार से...

क्यों
बुनोगे ना?
एक ताना
प्यार का, विश्वास का
मेरे साथ
ज़िन्दगी के करघे पर.....!!

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