क्या ये तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान है?
१. अश्रु का संसार ना साझा किया
सुख के मोती से मेरा
दामन भरा।
दु:ख
के वीराने में यूँ भटके रहे
क्या हांथ ना मेरा थामना स्वाभिमान है?
दिल ये मेरा सोच कर वीरान है, क्या ये तुम्हारे...........................
२. देने का आग्रह ही बारम्बार था
लेने से हरदम ही तुम्हें इन्कार था।
देके दाता बन गये, सुख पा लिया
पर क्या लेना याचना का भान है?
नयन मेरे देख कर हैरान हैं, क्या ये तुम्हारे.........................
३. दो लोक के बदले में लेके दो मुट्ठी भात को
उस इक दिवस की आस में बैठे हुए
जब इस हृदय के प्रेम की खातिर तेरा
मस्तक नवेगा॥
नयन जल-धारा बहे अविराम है, क्या ये तुम्हारे.........................
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देके दाता बन गये, सुख पा लिया ... सच
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसच में क्या केवल देना और कुछ भी स्वीकार न करना स्वार्थ नहीं है ? सामने वाले के प्रेम का अपमान नहीं है ?
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