19 मार्च 2013

सच का इंद्रधनुष...!






ज़िन्दगी के कुछ फ़लसफ़े

जो सही हैं

सबकी नज़र में

हम क्यों नहीं देख पाते उन्हें

एक नई नज़र से.....?


सिर्फ़ इसलिए

कि मिल गई है उन्हें सहमति

पूर्ण बहुमत की

जो शायद जरूरी है

सुदृढ़ता से खड़े रहने के लिए

इस समाज में...


या शायद 

हिम्मत नहीं है हममें

सच को सामने लाने की..

वो सच

जो ढक दिया गया है

झूठ के काले नकाबों से 

और चढ़ा दिया गया है सूली

वक्त की सलीब पर.....


वक्त की स्याही

झूठ के स्याह रंग को

और गाढ़ा कर देती है,

जिस पर सच का

कोई रंग नहीं खिल पाता.....


हिम्मत दिखानी होगी..

काली अँधियारी रात्रि को,

श्वेत प्रकाश से

धवल बनाने की.....


सच का दीप जलाना होगा

रंगों को जगमगाना होगा

कभी किसी को तो आगे आना होगा.....!!



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