2 जुलाई 2013

कवि की पीड़ा..!






अचानक एक दिन
लिखते-२
ठिठक गई मेरी कलम
दर्द..........!
किसका है ये दर्द ?
कहीं पूँछने ना लगें लोग...

क्या कवि सिर्फ़ अपनी ही पीड़ा लिखता है ?
क्यों नहीं समझते लोग
कि कवि के अन्दर
एक दूसरा समाज साँस लेता है
जिसके दर्द उसके होते हैं...
अभिव्यक्ति भले ही कवि की हो
परन्तु भोगा तो किसी और ने होता है।
कवि संवेदनशील होता है
जो एहसास कराता है, इस बाहरी समाज को
उस आंतरिक पीड़ा से
जिसकी ओर से इसने, आँखें बन्द कर रखी हैं
और पहन रखा है मुखौटा
प्रगतिशील होने का !!

                      x     x     x     x

15 टिप्‍पणियां:


  1. सुंदर प्रस्तुति...
    मुझे आप को सुचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 05-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।



    जय हिंद जय भारत...


    मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...

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  2. पढ़ कर मुंह से वाह वाह ही निकलता हैं
    सच में बेहद सार्थक रचना है।
    बहुत अच्छी लगी

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  3. एक दूसरा समाज साँस लेता है
    जिसके दर्द उसके होते हैं...
    अभिव्यक्ति भले ही कवि की हो
    परन्तु भोगा तो किसी और ने होता है।
    very nice .

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  4. आपने बिलकुल सही कहा,लोग यही समझते है,

    यहाँ भी पधारे ,http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html

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  5. सर्द तो हर किसी को होता है ... कवि उस दर्द को कह देता है ... शब्दों में उतर देता है बस ...

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  6. अति सुंदर ! कवि तो हर दिल के दर्द को स्वयं अनुभव करने की क्षमता रखता है और उसे सार्थक तरीके से संप्रेषित भी करना जानता है तभी तो एक व्यापक प्रतिक्रिया उदित होती है !

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  7. कवि हर दिल का दर्द लिखता है !

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  8. शुभ प्रभात
    दर्द
    दर्द
    और सिर्फ
    दर्द

    सादर

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  9. सच कवि की पीड़ा सिर्फ अपनी नहीं होती सबकी होती है ....बहुत बढ़िया कृति

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