सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं...
इक लड्डू मेरी सासुल
ने माँगा..
बहू जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥१॥
इक लड्डू मेरी जिठनी
ने माँगा..
छोटी जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥२॥
इक लड्डू मेरी ननदी
ने माँगा..
भाभी जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥३॥
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
एक व्यक्ति को क्यों छोड़ दिया -जिसे पूरा और सारा देने को तैय्यार बैठी हैं ?
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, आप ही बता दीजिए... मुझे तो इतना ही आता है.. :)
हटाएंइक लड्डू मेरी सासुल ने माँगा..
जवाब देंहटाएंबहू जरा दीजो, कस बने हैं..
...बहुत अच्छी लगीं यह पंक्तियाँ।
मुझे आगरा में बचपन सुने हए जच्चा गीत याद आ रहे हैं:
जवाब देंहटाएंजच्चा मेरी बड़ी सयानी रे, जच्चा मेरी बड़ी सयानी रे,
पांच कनस्तर घी के खा गई नौ मन खा गई मेवा री,
जच्चा मेरी खाना न जाने रे...
एक दूसरा गीत था
मेरी जच्चा चतुर सुजान
लाल जाए हरे हरे लाल जाए हीरा की कनी
मेरी जच्चा चतुर सुजान.
सासुल आवे चरवा चढ़ावे चरवा चढ़ाई नेग मांगे
नेग की बिरिया सींग देखावे पीया गए परदेस
तिजोरी की ले गए चाबी
मेरी जच्चा चतुर सुजान लाल जाए हरे हरे
लाल जाए हीरा की कनी...
अब वो गीत सुनाई नहीं पड़ते