वो जो कहते हैं कि
हमें उनमें कुछ नज़र
नहीं आता
वो क्या जानें कि
हमारी नज़रों में,
वे सितारे से रवाँ होते
हैं..
वो जिनके आने की आहट
से ही
चटक जाती हैं, मदमस्त
कलियाँ।
उनको शिकायत है कि
अनजाने ही हम,
गुल-ओ-बाग के पतझड़ की
वजह होते हैं..
हमें उलझन है कि
वो क्यों, कुछ नहीं
कहते
उनको फ़क है कि
हर इक अश़आर में उनके
हम ख्यालों से जवाँ
होते हैं..
उस खुशी की वजह भले
कुछ हो
खनकती है लबों पे जो
हमारे-उनके
मगर ये अश्क तो
इक-दूजे की ही पनाहों
में
बन के जज़बात बयाँ होते
है.....!!
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बहुत सुंदर कविता .......सशक्त लेखन !!
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