7 जुलाई 2014

जे हारें खितवा काटन जातीं (बुन्देलखण्डी लोक-गीत)






जे हारें खितवा काटन जातीं...

भुनसारें सें चकिया पीसैं
तनक नहीं अलसातीं॥१॥ जे हारें...

चनन की भाजी चटनी-मिर्चा
ले लई रोटी ताती॥२॥ जे हारें...

एक तो धर लओ टुकना ऊपर
दूजो काँख कँखियातीं॥३॥ जे हारें...

नारायण-२ इतनों करतीं
तऊँ नईं सुख पातीं॥४॥ जे हारें...

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