9 जून 2014

( कुछ शे’र )






ख़ुदा मेरे अता कर दे, तू मुझको बस नज़र इतनी।
कि हर वो शख़्श, जो देखूँ मैं, तो बस तू नज़र आए॥१॥

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मुझे अब सीखना होगा, हुनर सबसे छुपाने का।
कि हर इक लम्हा, यहाँ दिल में, किसी की याद रहती है॥२॥

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तुझे देखूँ, न देखूँ तो, किधर देखूँ बता यारम।
कि हर इक शख़्स में, मुझको तो बस तू ही नज़र आए॥३॥

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यहाँ किसको कहें अपना, ये दिल में टीस उठती है।
जरूरत पड़ने पर हर शख़्स, नज़रें फ़ेर लेता है॥४॥

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छुपा लो दोस्तों खंजर, नहीं अब नफ़रतें दिल में।
यहाँ की हर गली अब प्रेम से आबाद रहती है॥५॥

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परखना तुम, किसी कातिल को कभी, यूँ भी देखकर।
छुपा खंजर, किसे देखेगा, वो कुछ मुस्कुरा कर के॥६॥

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न जाने कब उतर आए, लहू उन पाक नज़रों में।
मैं अक्सर कांप जाती हूँ, यहाँ की आवो-हवा में॥७॥



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