भरोसे के एहसासात...!
तुमने
दिल की ज़मीं पर
रोप तो दिया पौधा
प्यार का...
पर
दिया नहीं
खाद समय का...
सींचा नहीं
स्नेह के जल से...
समाधान नहीं खोजा
जगह-२ उग आये
प्रश्न रुपी
खरपतवार का...
फिर
कैसे तुम्हें
इत्मीनान है कि
उगेंगे
भरोसे के एहसासात
सुकून की डाली पर.....!!
x x x x
इत्मीनान है कि
जवाब देंहटाएंउगेंगे
भरोसे के एहसासात
सुकून की डाली पर.....!!
यकी़नन ...
भावमय करते शब्द और रचना ।
बेहद भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमोहक रचना
जवाब देंहटाएं----
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भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
खूबसूरत कविता गुंजन जी आभार
जवाब देंहटाएंप्रेम-प्रीत को बिरवा चले लगाय,
जवाब देंहटाएंसींचन की सुधि लीजो ,मुरझि न जाय!
खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंकुछ पौंधे
प्यार के
उग जाते हैं
बिना खाद
हवा पानी के
विश्वास की
धरती पर !
http://vyakhyaa.blogspot.in/2012/09/blog-post_13.html
जवाब देंहटाएंभरोसा और संभाल दोनों ही जरूरी हैं ... प्रेम रुपी पौधे को फलने के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव सरलता से कह दिये ... लाजवाब ...
Ha ha..Satya wachan! :D
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । दोस्ती हो या प्यार स्नेह सिंचन की बडी जरूरत होती है । सिर्फ खरपतवार ही बिना देखभाल के पल जाती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना..
अनु