आज सुबह जब हम
बालकनी के कोने में
कुर्सी पर बैठे हुए
सोच में निमग्न थे,
तभी देखा
कुछ शब्द
कतारबद्ध चले जा रहे थे
उनमें से कुछ के
कान उमेंठ कर उठाया
लय में उन्हें बांधा
भावों की चाशनी में लपेट कर
हम कविता का निर्माण
करने ही जा रहे थे
कि उनमें से एक ने
चाशनी की परत उठाकर
अपना मुंह बाहर निकाला
और तेज स्वर में हमें लताड़ा
क्यों हम पर
इतना जुल्म करते हो
हमारे माध्यम से
अपने जज्बातों को बयां करते हो
क्यों नहीं है हिम्मत
दुनियां के सामने आने की
दिल में छुपा के रखा है जो राज
वो सबको बताने की
यूँ कब तक घुट-२ कर जीते रहोगे ?
अपने आंसुओं का कहर
हम पर ढाते रहोगे ?
हमने कुछ देर सोचा
फिर से कुछ भावों की चाशनी बनायी
एक परत शब्दों पर और चढ़ाई
सुन्दर सी कविता निखर आई
और हमने भी
ली एक आह संतोष के साथ
कि नहीं देख पाया कोई
दिल में चुभे हुए नश्तर
जिन से रिस रहा है खून
शब्दों के रूप में
भावों की चाशनी ओढ़े हुए.....!!
x x x x
वाह क्या बात है सुन्दर रचना.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंजिन से रिस रहा है खून
जवाब देंहटाएंशब्दों के रूप में
भावों की चाशनी ओढ़े हुए.....!!
बहुत खूब।
शब्दों ने सही कहा...बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंगहन भाव अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकब तक शब्दों पर चासनी चढानी पड़ेगी...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंवाह..खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंये तो अच्छा था कि शब्दो ने अपनी भावनाओ से आपको अवगत करा दिया नही तो आप तो उन पर जुल्म करते ही रहते
जवाब देंहटाएंनहीं देख पाया कोई
जवाब देंहटाएंदिल में चुभे हुए नश्तर
जिन से रिस रहा है खून
शब्दों के रूप में
भावों की चाशनी ओढ़े हुए.....!!
...सच यह चाशनी ही है जिस वजह से अन्दर दिल का दर्द समझना हर किसी के बूते में नहीं होता
बहुत सुन्दर रचना
वाह! खूब चासनी पकाई है आपने.
जवाब देंहटाएंनहीं देख पाया कोई
जवाब देंहटाएंदिल में चुभे हुए नश्तर
जिन से रिस रहा है खून
शब्दों के रूप में
भावों की चाशनी ओढ़े हुए.....!!
बहुत सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (22-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
भावों से सजी सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:पढ़ना था मुझे
और हमने भी
जवाब देंहटाएंली एक आह संतोष के साथ
कि नहीं देख पाया कोई
दिल में चुभे हुए नश्तर
जिन से रिस रहा है खून
शब्दों के रूप में
भावों की चाशनी ओढ़े हुए.....!!
------ वाह , कविता में सिमटे खूबसूरती ओढ़े लफ़्ज़ों के माध्यम से सब कह दिया आपने... आपकी पहली रचना पढ़ी मैंने ...और हाँ ...इसको पढ़कर मुस्कुराये बिना ना रह सकी |