30 जुलाई 2014

मेरा सूरज है या चाँद कहूँ...






ऐ ज़िन्दगी! तुझे क्या कहूँ,
          मेरा सूरज है या चाँद कहूँ.....

सूरज की तपिश है तुझमें तो,
          चन्दा सी शीतलता भी है।
इनसे है जगमग दुनिया तो,
          मेरे दिल की रौनक तुझसे है।
मेरा सूरज है और चाँद भी तू,
          ऐ दिल बता तुझे क्या कहूँ.....

सूरज सा दमकता चेहरा है,
          चन्दा सी कोमल काया है।
दिल के अन्तस को जो छू ले,
          ऐसा अमृत-जल छलकाया है।
तू सब कुछ है, मेरा सब कुछ है,
          दिल ये कहे, मैं क्या करूँ.....

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7 जुलाई 2014

जे हारें खितवा काटन जातीं (बुन्देलखण्डी लोक-गीत)






जे हारें खितवा काटन जातीं...

भुनसारें सें चकिया पीसैं
तनक नहीं अलसातीं॥१॥ जे हारें...

चनन की भाजी चटनी-मिर्चा
ले लई रोटी ताती॥२॥ जे हारें...

एक तो धर लओ टुकना ऊपर
दूजो काँख कँखियातीं॥३॥ जे हारें...

नारायण-२ इतनों करतीं
तऊँ नईं सुख पातीं॥४॥ जे हारें...

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9 जून 2014

( कुछ शे’र )






ख़ुदा मेरे अता कर दे, तू मुझको बस नज़र इतनी।
कि हर वो शख़्श, जो देखूँ मैं, तो बस तू नज़र आए॥१॥

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मुझे अब सीखना होगा, हुनर सबसे छुपाने का।
कि हर इक लम्हा, यहाँ दिल में, किसी की याद रहती है॥२॥

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तुझे देखूँ, न देखूँ तो, किधर देखूँ बता यारम।
कि हर इक शख़्स में, मुझको तो बस तू ही नज़र आए॥३॥

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यहाँ किसको कहें अपना, ये दिल में टीस उठती है।
जरूरत पड़ने पर हर शख़्स, नज़रें फ़ेर लेता है॥४॥

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छुपा लो दोस्तों खंजर, नहीं अब नफ़रतें दिल में।
यहाँ की हर गली अब प्रेम से आबाद रहती है॥५॥

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परखना तुम, किसी कातिल को कभी, यूँ भी देखकर।
छुपा खंजर, किसे देखेगा, वो कुछ मुस्कुरा कर के॥६॥

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न जाने कब उतर आए, लहू उन पाक नज़रों में।
मैं अक्सर कांप जाती हूँ, यहाँ की आवो-हवा में॥७॥



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5 मई 2014

बन्नी / विवाह-गीत (लोक-गीत)






मेरी लाडो रूप-सरूप
कि वर मिले.....हरे-२
कि वर मिले सांवरिया.....

लाडो की दादी यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥१॥

लाडो की बुआ यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥२॥

लाडो की चाची यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥३॥

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31 मार्च 2014

निर्विकार, नि:शेष ज़िन्दगी...!






तुम रोज कहते
कल बिताओगे
अपना पूरा वक्त
मेरे साथ
और मैं
ज़िन्दगी से
अपने आज को
धीरे से बुहार देती...
अब तो
इस रोज-२ की बुहार
से
ज़िन्दगी इस कदर
निर्विकार हो गई है
कि
अब तो इसमें
मेरे दु:ख के स्याह टुकड़े
भी नहीं दीखते
और अश्रु भी
कहीं मलिन होकर
दुबक गए हैं.....!!

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