मेरी लाडो रूप-सरूप
कि वर मिले.....हरे-२
कि वर मिले सांवरिया.....
लाडो की दादी यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥१॥
लाडो की बुआ यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥२॥
लाडो की चाची यों कह बैठीं
वर को देओ लौटाय..
अन्दर से वो लाडो बोली
मैं तो मरुँगी विष खाय
कि भाँवर लूँगी..... हरे-२
कि भाँवर लूँगी सांवरिया...
मेरी लाडो रूप-सरूप.....॥३॥
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आपकी लिखी रचना बुधवार 07 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंशानदार ........ उम्दा !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बन्नी पढ़ कर मजा आ गया |
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