1 अगस्त 2012

मेरा वज़ूद...!



सोच के परदे बन्द करके
अँधेरे कमरे के
इक कोने में
बैठा मेरा वज़ूद...
कभी गुनगुनाता
कभी सिसकता
कभी अपने होने पे
प्रश्न-चिन्ह लगाता ?
कभी इतराता, कभी इठलाता
कभी ताकता सूनी छत की ओर
कभी सिमट जाता अपने-आप में
ढूँढने लगता अन्दर ही
कि कहीं मिल जाये
अपने-आप को ढूँढता
अपने-आप में खोया
मेरा वज़ूद.....!!

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6 टिप्‍पणियां:

  1. कहीं मिल जाये
    अपने-आप को ढूँढता
    अपने-आप में खोया
    मेरा वज़ूद.....!!
    भावमय करते शब्‍द ...

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  2. बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    श्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. इस वजूद को ही तो जिन्दा रखना होता है ... जीने के लिए ...
    गहरी रचना ...

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