सोच के परदे बन्द करके
अँधेरे कमरे के
इक कोने में
बैठा मेरा वज़ूद...
कभी गुनगुनाता
कभी सिसकता
कभी अपने होने पे
प्रश्न-चिन्ह लगाता ?
कभी इतराता, कभी इठलाता
कभी ताकता सूनी छत की ओर
कभी सिमट जाता अपने-आप में
ढूँढने लगता अन्दर ही
कि कहीं मिल जाये
अपने-आप को ढूँढता
अपने-आप में खोया
मेरा वज़ूद.....!!
x x x x
कहीं मिल जाये
जवाब देंहटाएंअपने-आप को ढूँढता
अपने-आप में खोया
मेरा वज़ूद.....!!
भावमय करते शब्द ...
बहुत अच्छी भावाव्यक्ति , बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंश्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपको भी शुभकामनायें... :)
हटाएंइस वजूद को ही तो जिन्दा रखना होता है ... जीने के लिए ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना ...
bahut acchi prastuti....
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