कविताएँ : रूमी
अनुवाद : डॉ. गायत्री गुप्ता ‘गुंजन’
------------------------------------------
कोई ये ना सोचे कि हम बुरी तरह टूट चुके हैं;
कि हममें दरारें पड़ चुकी हैं
हम तो केवल अपनी पत्तियाँ गिरा रहे हैं,
आने वाले वसन्त के लिए...
* * *
‘बुरा वक़्त’ सामने से आकर डराता है;
पर इसे गुज़र ही जाना है, क्योंकि
हर निराशा से कोई ‘आशा’ झाँकती है।
हर अँधेरे को कोई ‘सूरज’ ढूँढ़ता है।
* * *
आधी ज़िन्दगी तुमने दूसरों को लुभाने में गुज़ार दी;
आधी उनके द्वारा निर्मित भ्रम में गुज़र जाएगी;
छोड़ दो अब बहकना, यह खेल तुम बहुत खेल चुके...
* * *
‘क्रोध’ एक तूफ़ान की तरह है..
जो कुछ देर बाद शान्त हो ही जाता है..
परन्तु तब तक बहुत सी शाखाएँ टूट चुकी होती हैं।
* * *
दु:ख मत करो!
जो भी तुमने खोया है,
किसी और रूप में लौट आयेगा...
* * *
मेरे लिए दुनिया में एक सहज मुस्कान से अधिक कीमती कुछ भी नहीं;
ख़ासकर जब वो मुस्कान एक बच्चे की हो...
*****
वाह! उम्दा योगदान...
जवाब देंहटाएंvery nice poems of Rumi...
जवाब देंहटाएं