‘पथिक’ : स्टीफ़न क्रेन
अनुवाद : डॉ. गायत्री गुप्ता ‘गुंजन’
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पथिक..
ये देखकर आश्चर्यचकित था, कि
सत्य की ओर ले जाने वाले मार्ग पर
परत दर परत मातम ही पसरा था...
‘ओह!’, वह बोला;
‘सदियाँ हुईं यहाँ से कोई नहीं गुजरा’..
किन्तु जब उसने प्रत्येक परत में एक धारदार चाकू पाया
‘कोई बात नहीं’, अन्त में वह फ़ुसफ़ुसाया;
‘नि:सन्देह कुछ अन्य रास्ते अवश्य होंगे’...
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06-02-2016) को "घिर आए हैं ख्वाब" (चर्चा अंक-2244) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'