शायद हमारा प्रेम
ईश्वर ने अपनी कलम से लिखा है
तभी तो ये है
उसी की तरह पावन, उसी की तरह कोमल...
और भावनाएँ भी
इस तरह अश्रु के रूप में झरती हैं
मानों प्रभु खुद
अपने भक्त के लिए रो रहा हो...
दो हृदयों की सार्थकता खोकर
अहसास भी
इस तरह एकाकार हुए जाते हैं,
जिस तरह आत्मा
उस परम तत्व में विलीन होने को तत्पर रहती है...
शायद हमारा प्रेम ईश्वरीय ही है.....!!
x x x x
भाव युक्त रचना ... ऐसा प्रेम सहज नहीं
जवाब देंहटाएंजिस दिन मन से शायद निकल जाएगा,उस दिन भी आप इसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगी।
जवाब देंहटाएंएक एक शब्द से जैसे ईश्वर साकार हो रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना !
ये रचना भी तो ईश्वर की ही है... उसी को समर्पित...
हटाएंशायद हमारा प्रेम
जवाब देंहटाएंईश्वर ने अपनी कलम से लिखा है
तभी तो ये है
उसी की तरह पावन, उसी की तरह कोमल... प्रेम ही ईश्वरीय
भावमय करते शब्द ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,कोमल सी रचना...
जवाब देंहटाएंअनु
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार आपका...! :)
हटाएंरश्मि दी की बात से सहमट हूँ। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंhttp://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
आप सभी प्रशंसकों का दिल से धन्यवाद एवं आभार... :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंमहसूस करने की ही तो बात होती है
ईश्वर की दी हुई हर चीज ईश्वरीय होती है !!
शायद हमारा प्रेम ईश्वरीय ही है.....!!
जवाब देंहटाएंसुंदर भावाभिव्यक्ति !!
सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएं