थाली में
बचे हुये दाल-भात को
उँगली से चाटना
नहीं आता जिनकी
तहज़ीब के दायरे में
क्या समझेंगे वो
भूख से बिलबिलाते हुये
बच्चे की संवेदना को...
पोशीदा कर रखा है
जिन्होंने
अपने दिल को
रत्न-जडित सोने के पर्दे के भीतर
क्या देखेंगे वो
फ़टे पर्दे के भीतर से झाँकती
नारी की लज्जा को...
खिंच गई है एक दीवार
इन्सान-२ के बीच
जैसे हों अमीर इंसान और गरीब इंसान
जिसे भेद नहीं पाती संवेदना
और नहीं जा पाता आर्द्र स्वर
इस पार से उस पार
क्योंकि इस दीवार को बनाया गया है
मानव सभ्यता के द्वारा
प्रगतिशीलता के गारे से
संस्कृति की ईंटों को चिन-२ कर.....!!
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भावमय करते शब्दों का संगम ... उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंक्योंकि इस दीवार को बनाया गया है
जवाब देंहटाएंमानव सभ्यता के द्वारा
प्रगतिशीलता के गारे से
संस्कृति की ईंटों को चिन-२ कर.....!!
इस सभ्यता ने मासूमियत छीन ली है ... सुंदर प्रस्तुति
क्योंकि इस दीवार को बनाया गया है
जवाब देंहटाएंमानव सभ्यता के द्वारा
प्रगतिशीलता के गारे से
संस्कृति की ईंटों को चिन-२ कर...सुंदर भाव पूर्ण प्रस्तुति,,,
recent post...: अपने साये में जीने दो.
भीतरी संवेदनाएं मर गईं हों तो सब बेकार, तहज़ीब बस ऊपरी पलस्तर है!
जवाब देंहटाएंमन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंये दीवार तू शुरू से है ... इसको पार करने वाले भी कई बार इसको भूल जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंसमय का दौर ही ऐसा है ..