अपाहिज,
अयोग्य,
असमर्थ,
लाचार,
किसकी है ये पहचान ?
वो जो देख नहीं पाते
या जो सब कुछ देख-सुन कर भी
किंकर्तव्यविमूढ़ रह जाते हैं...
चलने से लाचार कौन ?
वो जो खुद को बैसाखियों के सहारे
बमुश्किल आगे बढ़ा पाते हैं,
या जो खुद आगे निकलने की गरज़ में
दूसरों को गिरा कर
अपनी मंज़िल को दौड़ जाते हैं...
बोल-सुन ना पाना
मज़बूरी है उनकी
पर जो देख-सुन कर भी
बोल ना पायें
क्या संज्ञा है उनकी ?
कभी-२ विचार आता है मन में
झकझोर जाता है भीतर तक
विधाता से मानव का,
सम्पूर्ण तन पाकर भी
क्या मानव होने का फ़र्ज़
सम्पूर्णता से निभा पाए हम ?
या दूसरों की कमजोरियों पर
हंसना ही सीखा है हमने
अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए...
मानवीय अपंगता की
साक्षात् प्रतिमूर्ति
बन कर रह गए हैं हम
अपाहिज, अयोग्य, असमर्थ, लाचार
शायद यही है पहचान हमारी.....!!
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गहनता लिए सशक्त लेखन ...आभार
जवाब देंहटाएंजिनके दिमाग सिर्फ गलत सोचते वे हैं अपंग ...शरीर अपंग नहीं होता
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंभावप्रणव प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंvery very nice :)
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अपनी रचनाओं का कॉपीराइट मुफ़्त पाइए
सुंदर ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है.
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