तुम्हारे आँसू गीले बहुत हैं।
इतने
कि उनके गीलेपन से
सीला-२ सा हो गया है
सारा मौसम.....
इक गन्ध सी समा गई है
जिस्म में मेरे
साँस भी लूँ, तो
सीलापन थरथराता है...
पोर-२ स्पन्दित हो उठता है
तुम्हारी आहों से।
ये गीलापन
हरदम हरे रखता है
तुम्हारे ज़ख्म...
इन्हें प्यार की हवा दो।
और जो
आँखों की कोर में
कुछ बूँदें बची हैं,
इन्हें मुस्कुराना सिखा दो.....!!
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प्रेम की हवा से सब कुछ महक उठता है ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...