23 अक्तूबर 2012

मन की सिहरन...




                                                                                 


कुछ बूँदें बारिश की

बरस रही हैं आँगन में

मन में भी कुछ

गीलापन सा महसूस हो रहा है...


कुछ भीग गया है शायद

यादों के कुछ कपडे+ हैं

तह करके रखे थे

दिल के किसी कोने में...


अब इन्तज़ार ही कर सकती हूँ

कहीं से आये एक लिफ़ाफ़े का

जो होगा मेरे नाम का

पर पता नहीं होगा उस पर...


शायद कुछ धूप मिल जाये उसमें

लफ़्ज़ों में लिपटी हुई

जो हौले से सहला जाये

मन के गीलेपन को...


    x  x  x 

9 टिप्‍पणियां:

  1. शायद कुछ धूप मिल जाये उसमें
    लफ़्ज़ों में लिपटी हुई
    जो हौले से सहला जाये
    मन के गीलेपन को...
    वाह ... बहुत खूब कहा ...

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  2. अब इन्तज़ार ही कर सकती हूँ

    कहीं से आये एक लिफ़ाफ़े का

    जो होगा मेरे नाम का

    पर पता नहीं होगा उस पर... कुछ भीगे एहसास तो होंगे

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  3. आह...
    इन्तेज़ार है एक कतरा धूप का.....

    बहुत सुन्दर!!

    अनु

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  4. अंतर मन से अनुभूत सहज उद्भूत रचना .

    दिल के अहसासों का.....

    23 अक्तूबर 2012

    मन की सिहरन...







    कुछ बूँदें बारिश की

    बरस रही हैं आँगन में

    मन में भी कुछ

    गीलापन सा महसूस हो रहा है...


    कुछ भीग गया है शायद

    यादों के कुछ कपडे+ हैं

    तह करके रखे थे

    दिल के किसी कोने में...


    अब इन्तज़ार ही कर सकती हूँ

    कहीं से आये एक लिफ़ाफ़े का

    जो होगा मेरे नाम का

    पर पता नहीं होगा उस पर...


    शायद कुछ धूप मिल जाये उसमें

    लफ़्ज़ों में लिपटी हुई

    जो हौले से सहला जाये

    मन के गीलेपन को...

    जवाब देंहटाएं
  5. शायद कुछ धूप मिल जाये उसमें

    लफ़्ज़ों में लिपटी हुई

    जो हौले से सहला जाये

    मन के गीलेपन को...
    ................शायद

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