4 जून 2012

मैं चाहती हूँ तुम्हें, तुम्हारे लिए...



एक बार पूछा था तुमने मुझसे
क्यों चाहती हूँ मैं तुम्हें इतना
पता नहीं क्या सुनना चाहते थे तुम
पर मैं तो बस इतना ही कह पाई
मैं चाहती हूँ तुम्हें, तुम्हारे लिए...!

क्या इतना काफी नहीं है
किसी को प्यार करने के लिए ?
चाहती हूँ, भर दूँ तुम्हारी झोली खुशियों से
ना रहे दुःख का एक कण भी तुम्हारे जीवन में
बस इतनी ही चाहना है मेरी
हाँ, मैं चाहती हूँ तुम्हें, तुम्हारे लिए.....!!

17 टिप्‍पणियां:

  1. किसी को उसीके लिए चाहना ही तो दुआ है

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  2. चाहती हूँ, भर दूँ तुम्हारी झोली खुशियों से
    ना रहे दुःख का एक कण भी तुम्हारे जीवन में
    पावन भाव!

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  3. बस इतनी ही चाहना है मेरी
    हाँ, मैं चाहती हूँ तुम्हें, तुम्हारे लिए.....!!iske aage to kuch kahne ki jarurat hi nhi hai.....

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  4. कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं....

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  5. खूबसूरत अहसास! बेहतरीन रचना है गायत्री जी...

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  6. बेहतरीन भाव
    यह प्रश्न भी कभी कभी भ्रमित कर देता है कि
    'क्यों चाहता है कोई किसी को'

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  7. वाह ... बेहतरीन ।
    कल 06/06/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    '' क्‍या क्‍या छूट गया ''

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  8. क्यों चाहती हूँ ......
    इस क्यों का उत्तर किसी के पास नहीं है
    और हो भी नहीं सकता
    सादर

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  9. बहुत बहुत सुंदर.....................

    पराकाष्ठा है ये प्रेम की.....

    अनु

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  10. Vaise to kisi ko chahna hi Bahut hotahai ...Fir khushiyon ko bhar dene ki chahat to sone pe suhaga hai ...

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  11. बहुत ही बढ़िया।

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    सादर

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  12. सुंदर भाव संयोजन और सुंदर लेखन !

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  13. मुक़द्दस से जज़्बात.... सुंदर रचना...
    सादर।

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  14. अनुपम भाव संयोजन से सजी उत्कृष्ट रचना...

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  15. पर मैं तो बस इतना ही कह पाई
    मैं चाहती हूँ तुम्हें, तुम्हारे लिए...!

    bahut sunder rachna, sach hai itna hi kaafi hai -chahna chahat ke liye.

    shubhkamnayen

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