यहाँ मैं अनामिका हूँ
हिरन सी चौकड़ी भरती,
बेख़ौफ़ उडान..
हवा से बातें करते,
मदमस्त हौसले..
फिर भी जकड़ दिया
मुझे बेड़ियों में..
सुगन्धित हवा
कैद कर दी
नापाक पंजों में..
किस जहाँ का है ये फैसला
बात सिर्फ
एक फूल की नहीं,
हजारों की है..
दर्द में सिसकती
बेलगाम आहों की है..
कहनी है अपनी बात
सुननी ही होगी फरियाद
क्यों सिर्फ,
यहाँ मैं अनामिका हूँ.....!!
अनामिका
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचा ||
गहन अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंSUDAR RACHNA...ANAMIKA...
जवाब देंहटाएंISE BHI PADHEN:-
"कुत्ता घी नहीं खाता है "
http://zoomcomputers.blogspot.in/2012/06/blog-post_29.html
अपने अकेलापन को दूर करने के लिए आपको कितने लोंगो की आवश्यकता पड़ेगी?.....अरशद अली
http://dadikasanduk.blogspot.in/2012/06/blog-post.html
बहुत सुन्दर रचना गायत्री जी.....
जवाब देंहटाएंदिल को छू गयी...
अनु
गहराई में कहीं छू गई आपकी रचना। बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रश्न उकेर रही है रचना
सुंदर एवं सार्थक रचना अंतिम पंक्तिया सबसे अच्छी लगी।
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