तलाश
खुद की
खुद के भीतर
अनन्त कहीं गहराई में
पर
हर बार
कुछ दूरी तय कर
ठिठक जाती...
रोक लेती
तुम्हारी याद
मील के पत्थर की तरह...
यह सही भी है
क्योंकि नहीं तय होतीं
लम्बी दूरियाँ
बिना किसी सहारे के...
पर व्यर्थ ही होगी
ये तलाश
क्योंकि
मैं तो हूँ ही नहीं खुद में
तुम ही तुम हो
हर सिम्त
मुस्कुराते
तो खुद को कहाँ खोजूँ मैं
क्या तुम में ?
हाँ शायद,
तुममे ही
पूरी होगी मेरी तलाश.....!!
x x
x x
क्योंकि नहीं तय होतीं
जवाब देंहटाएंलम्बी दूरियाँ
बिना किसी सहारे के...
***
होता है रास्ते का सहारा, आशाओं का सहारा, या फिर किसी अपने से "तुम" का!
खूबसूरत नज़्म
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल मंगलवार (13-08-2013) को "टोपी रे टोपी तेरा रंग कैसा ..." (चर्चा मंच-अंकः1236) पर भी होगा!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
सुन्दर पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंमैं तो हूँ ही नहीं खुद में
जवाब देंहटाएंतुम ही तुम हो
हर सिम्त...
........कितना खूबसूरत एहसास...इसके बाद तो तलाश की ज़रुरत भी नहीं रह जाती ..है न
मैं तो हु ही नहीं खुद में कहीं ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ..
कोई जब पूर्णता में समा जाता है तो खुद की तलाश वहां जा कर पूरी होती है ...
जवाब देंहटाएंजो मैं हूँ वही तुम हो जो तुम हो वही मैं हूँ , फिर भी ना तुम मैं हो ना मैं तुम हूँ .. :)
जवाब देंहटाएंमैं तो हूँ ही नहीं खुद में
जवाब देंहटाएंतुम ही तुम हो
हर सिम्त
मुस्कुराते
तो खुद को कहाँ खोजूँ मैं
क्या तुम में ?
हाँ शायद,
तुममे ही
बहुत सुंदर ।
मैं तो हूँ ही नहीं खुद में
जवाब देंहटाएंतुम ही तुम हो
हर सिम्त...
........ खूबसूरत एहसास