17 अप्रैल 2015

तेरे सदके...!




पाओगे कैसे हमें उनकी निगाहों में कहो
जबकि हम उनकी धड़कनों में बसा करते हैं..

हमने अपनी हर एक साँस वार दी उन पर
एक वो हैं, जो दो-चार धड़कनों का गुमां करते हैं..

ठहरो, बालिश्तों से क्या नापोगे तुम कद मेरा
हम वो ज़र्रा हैं, जो तूफ़ानों सा दम भरते हैं..

तुमने तो कह ली अपनी, और बस कहते ही गए
हम तो चुप रह के, उनके सजदे किया करते हैं..

तुम क्या सिखाओगे हुनर, दरिया में बहने का हमें
हम तो खामोश किनारों से सबक लिया करते हैं..


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