26 मई 2015

नेमतों के गुलदस्ते...!




फ़िर से बख्शे हैं तूने नेमतों के गुलदस्ते
फ़िर से उट्ठे हैं मेरे हाथ दुआओं के लिए॥१॥

फ़िर से महके हैं किसी नज़्म के हँसी दस्ते
फ़िर से आया है कोई, बज़्म में अल्फ़ाज़ लिए॥२॥

फ़िर से दी है तूने आवाज मेरे सैदाई
फ़िर से आए हैं, फ़ना होने को जज़्बात लिए॥३॥

फ़िर चमक उट्ठा है आकाश किसी लौ की तरह
फ़िर से टूटा है इक तारा तेरी सौगात लिए॥४॥

फ़िर से आया है अँधेरा मुझे डराने को
फ़िर से चमके हैं ये जुगनू तेरी कोई बात लिए॥५॥

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