4 फ़रवरी 2014

गज़ल






हे वसन्त ! तू अपने जैसा मधुमय कर दे।
जितना रसमय है तू, मुझको भी रसमय कर दे॥१॥

प्रतिपल, प्रतिक्षण बहती है रसधार तुझमें।
मुझ पर भी तू प्यार की बौछार कर दे॥२॥

प्राणमय है, कान्तिमय है, वत्सल भी तू।
मैं हूँ अकेली, मुझको अपनी छाँव दे दे॥३॥

प्रीत की पुलकित सी कोमलता है तुझमें।
उस कोमलांगी छुअन का एहसास भर दे॥४॥

ईश्वर का अभिनव वरदान, जो तुझको मिला है।
उस अंश में मुझको भी भागीदार कर दे॥५॥

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5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर...
    आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. आपकी कृति बुधवार 5 फरवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. सुन्दर शेरों से सजी लाजवाब गजाल ...

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