15 जून 2012

ज़िन्दगी.....!



रेत पे लिखा शब्द
हो गयी है मेरी ज़िन्दगी
नीरव, निःशब्द
सुनसान ज़िन्दगी...

क्योंकर इतना दुःख
मेरी झोली में आया 
बेनाम सा राग
बन गयी है ज़िन्दगी...

इस कदर तन्हा
बेनाम सी ज़िन्दगी
गर्म ज़मीन पर
नंगे पैरों चलती
सुलगती ज़िन्दगी...

जब भी देखना चाहा
अपने दिल में झाँककर
खाली ही लगती
तेरी याद ज़िन्दगी.....!!

12 टिप्‍पणियां:

  1. जब भी देखना चाहा
    अपने दिल में झाँककर
    खाली ही लगती
    तेरी याद ज़िन्दगी.....!
    भावमय करते शब्‍द ... बेहतरीन

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  2. लगता है कि दिल की गहराइयों से लिखी है यह रचना... बहुत खूब!

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  3. क्यूँ हर तरफ ऐसी ही दिखती है ज़िन्दगी
    फूलों पर पाँव रखते ही
    वे कांटे हो जाते हैं ...
    हाथ आकर भी हाथ नहीं आती ज़िन्दगी

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  4. ज़िंदगी -
    दिन का शोर है
    जो
    रात की खामोशी में
    खो जाता है ।

    बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं भाव

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  5. मन की आवाज़ लग रही है ये रचना.

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  6. जिंदगी और शब्दों का गहरा तालमेल...बहुत खूब

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