ख़ाक होने पे यकीं आया कि ज़मीं से बाबस्ता हैं
हम।
वरना तो ख़ुदा होने में कोई कसर बाकी न रही॥१॥
अब तो यूँ कैद हैं खुद की बनाई कब्रों में।
जैसे इस दुनिया से अपनी कोई यारी न रही॥२॥
यूँ सरेआम जिस्म नोंचते हैं अबला का।
क्या उनकी अपने ख़ुदा से ही परदेदारी न रही॥३॥
हम तो जीते हैं यूँ, कि जानते हैं जिन्दा हैं।
वरना जीने की नीयत तुम जैसी, हमारी न रही॥४॥
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