( ये कविता उन स्वतंत्रतासेनानियों तथा समाज-सेवियों को समर्पित है, जो
दूसरों के लिए अपने जीवन को न्योछावर करने में ज़रा भी नहीं सकुचाते... )
आज मेरा जीवन-संघर्ष,
पूँछने लगा मुझसे यूँ आकर...
क्या पाया तुमने,
दूसरों के लिए खुद को मिटाकर...
क्या जवाब देता मैं,
रह गया मुस्कुरा कर.....!
वो क्या जाने, कितना सुकून पाता हूँ,
जब दूसरों के दिल को,
थोड़ी सी ख़ुशी दे पाता हूँ...
शायद ये एहसास हो जाये,
अपने इंसान होने का मतलब समझ में आ जाये.....!
मिटटी से उपजे और
मिटटी में ही मिल जाना है...
हमारे जीवन का,
सिर्फ यही ताना-बाना है...
गर दर्द बाँट लो, तुम दूसरों का,
ये ताना खुशबुओं से सराबोर हो जाये.....!
अनगिनत राहें खुल जाएँगी,
उनमें से हर एक, मंजिल की ओर ले जाएगी...
जीवन का स्वर्गिक आनंद तो पाओगे,
इंसान होने का सही अर्थ भी समझ जाओगे.....!!
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