रचनाकार : डॉ. गायत्री गुप्ता ‘गुंजन’
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तुमने बेचैन होके इस कदर पुकारा मुझको।
साहिल पे छोड़ गई मझधार की धारा मुझको॥
कैसे देगा कोई इस भँवर में सहारा मुझको।
जबकि अपना ही ग़म अब तो है प्यारा मुझको॥
उसको दुनिया की सारी रस्में जो निभानी थीं।
अक्श़ ही छोड़ गया मेरा बेसहारा मुझको॥
मुझे इस दुनिया के हर झूठ से डर लगता है।
क्योंकि कड़वा ही सही सच ही है प्यारा मुझको॥
बेताल्लुक तुझसे करे और किसी के दिल में पले।
कोई एहसास नहीं अब है गवारा मुझको॥
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