31 मार्च 2014
25 मार्च 2014
सोहर / जच्चा (लोक-गीत)
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं...
इक लड्डू मेरी सासुल
ने माँगा..
बहू जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥१॥
इक लड्डू मेरी जिठनी
ने माँगा..
छोटी जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥२॥
इक लड्डू मेरी ननदी
ने माँगा..
भाभी जरा दीजो, कस बने
हैं..
आधा देत मोरी अँगुरी
दु:खत हैं..
पूरो दियो ना जाए-
गरी के गोला नौ पड़े
हैं..
पसेरिन इनमें घी भरो
है..
छुआरे-मेवा सब पड़े हैं..
सौंठ के लड्डू चरपरे
हैं.....॥३॥
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10 मार्च 2014
गज़ल
हम तो हरदम मौत से,
दो हांथ करके ही जिए।
ज़िन्दगी से अपनी यारी,
तुमसे ज्यादा है तो है॥१॥
हम ना बैठेंगे सुकूँ
से, जब तलक है जाँ में दम।
जलते रहना ही अगर, किस्मत
हमारी है तो है॥२॥
ज़िन्दगी मायूस होकर,
ना विदा कर तू मुझे।
बस फ़कत ये चार दिन की,
तुझसे यारी है तो है॥३॥
दिल-ओ-जाँ कुर्बान थे,
पहले ही औरों के लिए।
साँसों पर भी मौत की
अब, पहरेदारी है तो है॥४॥
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5 मार्च 2014
तेरे ख्यालों में...!
वो जो कहते हैं कि
हमें उनमें कुछ नज़र
नहीं आता
वो क्या जानें कि
हमारी नज़रों में,
वे सितारे से रवाँ होते
हैं..
वो जिनके आने की आहट
से ही
चटक जाती हैं, मदमस्त
कलियाँ।
उनको शिकायत है कि
अनजाने ही हम,
गुल-ओ-बाग के पतझड़ की
वजह होते हैं..
हमें उलझन है कि
वो क्यों, कुछ नहीं
कहते
उनको फ़क है कि
हर इक अश़आर में उनके
हम ख्यालों से जवाँ
होते हैं..
उस खुशी की वजह भले
कुछ हो
खनकती है लबों पे जो
हमारे-उनके
मगर ये अश्क तो
इक-दूजे की ही पनाहों
में
बन के जज़बात बयाँ होते
है.....!!
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