‘यदि’ : रूडयार्ड किपलिंग
अनुवाद : डॉ. गायत्री गुप्ता ‘गुंजन’
यदि तुम उस समय भी धैर्य रख सको, जब तुम्हारे आसपास, लोग अपनी असफ़लताओं का दोष तुम पर मढ़ें;
यदि तुम उस समय भी खुद पर विश्वास रख सको, जब सब तुम्हें सन्देह की नज़रों से देखें,
साथ ही, उनके सन्देह को भी जगह दो;
यदि तुम प्रतीक्षा कर सको और ऐसा करते हुये थकान भी महसूस ना करो;
या, झूठ का सामना करते हुये भी, झूठ के पास ना फ़टको;
या फ़िर घृणा से घिरे रह कर भी, उसको आत्मसात ना करो;
और इतना होने के बावज़ूद भी, अपनी अच्छाई और बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन ना करो...
यदि तुम स्वप्न देख सको – किन्तु उसमें खोने से खुद को बचाये रखो;
यदि तुम विचारशील बन सको – किन्तु विचारों को खुद पर हावी ना होने दो;
यदि तुम विजय और विनाश में समान भाव रख सको;
यदि तुम अपनी उन बातों को भी बर्दास्त करने की क्षमता रख सको, जो
धूर्त लोगों द्वारा मूर्खों को फ़ँसाने के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश की जाएँ;
या अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी चीजों को बिखरा देखकर, निराशा के बावजूद
अपने टूटे-फ़ूटे औजारों से पुनर्निर्माण का हौसला रख सको...
यदि तुम अपनी सारी प्राप्तियों को एक साथ ही दाँव पर लगा सको
और हारने पर दोबारा फ़िर से शुरू कर सको,
फ़िर भी कभी मुँह से एक शब्द ना कहो;
जब अपनी बारी की प्रतीक्षा करते-२
तुममें सिर्फ़ अपनी इच्छाशक्ति के अलावा और कुछ शेष ना रह जाये
उस समय तुम अपने दिल को माँसपेशियों और तन्तुओं सहित
अपने हिस्से का काम करने के लिए उत्साहित कर सको...
यदि तुम भीड़ में भी अपनी पहचान बरकरार रख सको;
या राजा के साथ के बावजूद – अपनी जड़ें ना भूलो;
यदि ना तो कोई शत्रु और ना ही कोई मित्र तुम्हें सताने की क्षमता रख सके;
यदि तुम सबके साथ समानता का व्यवहार रख सको;
यदि तुम ना भुलाये जा सकने वाले एक मिनट को बेहतरीन ६० सेकण्ड की दौड़ से भर सको;
तो ये धरती और इसकी सारी सम्पदा, तुम्हारी होगी;
और – इससे भी बढ़कर – तुम एक इन्सान कहलाओगे, मेरे बच्चे!
*****