ज्यों-२
तुम्हारे, ख्वाहिशों के पंख
उड़ान भरते हैं
मेरे पैरों तले
एक टुकड़ा जमीन
खिसक जाती है...
मैं जब भी मिटाती
हमारे बीच की दूरी को
सामन्जस्य के इरेज़र से
तुम खींच देते
कहीं ज्यादा बड़ी लकीर
और बढ़ा देते
दो और कदम
अपने आसमाँ की ओर...
और मैं,
अपने आसमाँ तले
छुपा लेती, चुपके से
उन हाथों को
जो उठे थे, कभी
तुम्हारी सफ़लता की
दुआ के लिए.....!!
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