तलाश
खुद की
खुद के भीतर
अनन्त कहीं गहराई में
पर
हर बार
कुछ दूरी तय कर
ठिठक जाती...
रोक लेती
तुम्हारी याद
मील के पत्थर की तरह...
यह सही भी है
क्योंकि नहीं तय होतीं
लम्बी दूरियाँ
बिना किसी सहारे के...
पर व्यर्थ ही होगी
ये तलाश
क्योंकि
मैं तो हूँ ही नहीं खुद में
तुम ही तुम हो
हर सिम्त
मुस्कुराते
तो खुद को कहाँ खोजूँ मैं
क्या तुम में ?
हाँ शायद,
तुममे ही
पूरी होगी मेरी तलाश.....!!
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