“ हो
s s, रघुनन्दनजी घर आए,
सजाओ बन्दनवार जी..
सब
मिल के दीप जलाओ,
गाओ मंगलचार जी...”
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हो s जी... रघुनन्दन जी की भाँवर,
पड़न लागीं, सियाजी के संग.....
हो जी,
आवहु मैया-बाबुल
करहु दान कन्या का..॥१॥
हो जी,
कर के पीले हाथ
सुफ़ल अपना जनम करो..॥२॥
हो जी,
पाली, दुलारी, ये राजकुमारी
विदा कर दो..॥३॥
हो
जी, सुख से रहो तुम लाडली
प्यार सभी का मिले..॥४॥
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श्री राम नवमी की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (29-03-2015) को "प्रभू पंख दे देना सुन्दर" {चर्चा - 1932} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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