इस कविता का मूल भाव एक ऐसे वृद्ध व्यक्ति पर आधारित है, जिसकी एकमात्र आशा उसका पुत्र उसे अकेला छोड़कर शहर में बस गया है. जीवन के अंतिम क्षणों में जब उसे अपने पुत्र की आवश्यकता है, तब वह उसे भूलकर अपने परिवार में ही रम गया है. यही आज के युग की विडंबना है की जो माँ-बाप अपने बच्चों के पालन-पोषण में सारा जीवन लगा देते है, वही बच्चे उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं. अपने पुत्र को याद करते हुए, उस वृद्ध की जो 'अंतर्वेदना ' है, उसे मैंने अपनी इन पंक्तियों में उभारनेका प्रयास किया है.....
एक कच्चा मकान
तमाशबीन समाज
बंद रास्तों के बीच
उखड़ा-2 सा आदमी
जिन्दगी.....
एक घुटता हुआ सा सफ़र
ख़ामोशी.....
धूप और साया
यादें उसकी.....
टूटे स्वप्न, हुयी आस झूंठी
बेचारा आदमी
जिन्दगी की ढलती शाम में
अपलक निहारता, ढूंढता
खोये उजियाले सपने
समुन्दर के किनारे
चांदनी के सहारे
सूने आकाश के तले.....!!
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बहुतों का दर्द है आज यह.आपने सरल शब्दों में उकेर दिया.
जवाब देंहटाएंदुखद स्थिति है परंतु कविता सुन्दर है।
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